बेगम हजरत महल की भूमिका: 1857 के परिप्रेक्ष में 

 

डाॅ0 विजेन्द्र सिंह

प्रवक्ता, इतिहास, ळैैै, जसिया, रोहतक, (गांॅव भगवतीपुर, जिला रोहतक)

 

 

1857 में उत्तरी और मध्यि भारत में एक शक्तिषाली जन विद्रोह उठ खड़ा हुआ और उसने ब्रिटिष शासन की जड़ें तक हिला कर रख दीं इसका आरम्भ तो कम्पनी की सेना के भारतीय सिपाहियों  से हुआ, लेकिन जल्द ही इसने व्यापक रूप धारण कर लिया लाखों-लाख किसान, दस्तकार तथा सिपाही एक साल से अधिक समय तक बहादुरी से लड़ते रहे और अपनी उल्लेखनीय वीरता और बलिदानों से उन्होंने भारतीय इतिहास में एक शानदार अध्याय जोड़ा।1

 

1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में भारतीय स्त्रियों ने जो भूमिका निभाई तथा जिस निर्भीकता से अंग्रेजों से टक्कर ली उसने हिन्दुस्तान का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया ऐसी ही एक वीर महिला थी अवध की बेगम हजरत महल जिसका जन्म 1820 0 में फैजाबाद (अवध) में हुआ अवध की शान बेगम हजरत महल की जिन्दादिली की कहानी कौन नहीं जानता, लखनऊ में बेगम हजरत महल ने अंग्रेजी सरकार से जमकर लोहा लिया बेगम को मैदान--जंग में ब्रिटिष फौज से दो-दो हाथ करते देखकर भू-स्वामीयों, सिपाहीयों, किसानो, कर्मचारियांे, दलित वर्ग, पिछड़ी जातियों, हिन्दूओ मुसलमानों और बड़ी संख्या में महिलाओं ने भी उनके साथ हथियार उठा लिये थे।2 तथा उनके साथ मर्दाने कपड़े पहन कर औरतों की टोली ने ब्रिटिष फौजों का मुकाबला किया था

 

1857 के स्वतन्त्रता आन्दोलन में अवध के इतिहास में मुख्य रूप से बेगम हजरत महल का योगदान भी किसी प्रकार से झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई के योगदान से कम नहीं रहा लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह की पत्नी बेगम हजरत महल का शादी से पहले नाम मौहम्मद खानम था शाह और बेगम हजरत की शादी के बाद उन्हें पुत्र रत्न भी प्राप्ति हुई जिसका नाम ब्रर्जिस कादर रखा गया, फिर वाजिद अली शाह ने बेगम हजरत को ’’इफ्तेखाँरुन-निसाँ’’ के खिताब से नवाजा वाजिद अली शाह कैद में होने के कारण नाबालिक ब्रर्जिस कादर को लखनऊ की गद्दी पर बैठाया गया।3 नवाब वाजिद अली शाह को यह अनुमान तक था कि बेगम अपनी बुद्धिमत्ता, राज्य संचालन तथा युद्ध आदि की कुषलता से एक दिन सल्तनत--अवध की जनबा--आलिया के खिताब से सम्मानित होकर भारत के इतिहास में अपना नाम रोषन करेगी 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम की आग सारे भारत में ही सुलग उठी थी अवध के क्षेत्र में यह आग कुछ अधिक ही फैल उठी थी इस आग के क्षेत्र लखनऊ, दिल्ली, कानपुर प्रमुख केन्द्र थे

 

लखनऊ क्रान्ति का नेतृत्व बेगम हजरत महल और फैजाबाद बड़े जमींदार  परिवार में जन्मे मौलवी अहमदुल्लाह षाह कर रहे थे।4 मुगलों के कमजोर होने पर अवध शक्ति एवं स्वतंत्र राज्य बन गया जिसकी राजधानी लखनऊ बनी अवध की गद्दी पर अन्तिम शासक नवाब के खजाने का उपयोग भी अंग्रेजों ने

 

मनमाने ढंग से खर्च करना शुरू कर दिया अवध पूरी तरह कंपनी के अधीन करने के लिये डलहौजी ने नवाब से एक नई संधि करने का प्रस्ताव किया, लेकिन बेगम हजरत महल ने अंग्रेजों की इस चाल को समझते हुए नवाब को प्रस्ताव अस्वीकार करने को कहा और इस प्रकार नवाब ने उस संधि प्रस्ताव पर हस्ताक्षर नहीं किये  बादशाहे-अवध वाजिद अली शाह को सिंहासन से हटाने की तैयारियां तो दषकों पूर्व से शुरु हो चुकी थीं, लेकिन वह अषुभ घड़ी 4 फरवरी 1856 को ही गई, जब शाह को हटाने का आदेष, भरे दरबार में ब्रिटिष रेजीडेन्ट आउट्ररम ने दे दिया विवष बादषाहे-अवध ने बिना किसी विरोध के अपना शाही ताज रेजिडेन्ट को सांेप दिया और 13 मार्च 1856 को 500 लोगांे के साथ फौजी पहरे में शाह को कलकत्ता भेज दिया।5 इससे क्रोधित होकर अंग्रेजों ने नवाब को नजरबन्द बनाकर कलकत्ता भेज दिया बेगम नवाब की लापरवाही को पहले भी समझती थी और समय-समय उन्हें राज-काज के प्रति उन्हें समझाती रहती थी इस तरह नवाब की लापरवाही के कारण राज्य व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई और इसका परिणाम यह हुआ कि 5 अप्रैल 1857 को मंटगुमरी के गर्वनर जनरल के नाम पत्र लिखा कि पिछले रिकार्ड यहाँ नष्ट कर दिये गये हैं इसी प्रकार हेनरी लारेंस ने भी 18 अप्रैल 1857 को जनरल को एक पत्र लिखा कि नवाब की सेनाएं इधर-उधर घूम रही हैं इससे सावधान रहना बहुत जरूरी है रेजीडेन्ट सल्तनत भंग कर दी गयी जिससे फौजी सिपाही बेकार हो गये इस आक्रोष के साथ असंतोष भड़क उठा

 

7 मई 1857 को भूसाबाग की सैनिक टुकड़ियों ने अंग्रेज कमान्डर की आज्ञा मानने से इंकार कर दिया 10 मई 1857 की मड़ियाऊँ छावनी की एक टुकड़ी ने अंग्रेज अधिकारियों पर बन्दूकें तान ली इसकी सूचना अंग्रेजों तक पहुँच गई और वे सावधान हो गये आक्रोष और बढ़ गया तथा लखनऊ की सड़कों पर हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच जय घोष के नारे गूंजने लगे 30 जून को फैजाबाद के मौलवी अहमदुल्ला षाह ने अपनी फौजों के साथ लखनऊ चिन्हट में घुसने का प्रयास किया लेकिन यहाँ अंग्रेजों ने मोर्चा लगाया जिसको विद्रोहियों ने परास्त कर दिया और बेलीगारद में घुसने का प्रयास किया और यह घमासना युद्ध को जीतने की प्रेरणा थी मौलवी अहमदुल्लाह षाह जिनको बन्दी बनाकर मृत्युदण्ड की सजा सुना दी गई थीउन्हें फैजाबाद में बन्दी बनाकर रखा गया था अवध के सैनिकों की हिम्मत और लगन से मौलवी साहब को मुक्त करा लिया गया और उनको अपना नेता बनाकर सारी बागडोर उनके हाथ में सौंप दी गई

 

13 मार्च 1856 से कलकत्ते में नजरबन्द वाजिद अली शाह 5 जुलाई को आये तो बेगम हजरत ने अपने ग्यारह वर्षीय बेटे बर्जिस कादर को अवध का राजा घोषित कर लखनऊ को अपने नियंत्रण में ले रखा था।6 बेगम ने अपनी फौजों को चुस्त-दुरूस्त करना शुरू कर दिया इसके साथ ही दिल्ली के बादषाह बहादुर शाह जफर के नाम आजादी का संदेष भिजवाया हिन्दू राजा बालकृष्ण राव को अपना वजीर--आजम नियुक्त किया बेगम ने बिना भेदभाव के उनकी काबलियत के अनुसार खिताब बाँटे, लेकिन शासक की बागडोर अपने हाथ में रखी और शासन चलाना शुरू कर दिया सैनिकों की सुख सुविधा के लिए खजाने का मुंह खोल दिया गया बेगम ने महिलाओं की मुक्ति सेना का भी गठन किया और उसे नियमित रूप से युद्ध का प्रषिक्षण देना भी शुरू किया बेगम हजरत महल ने लखनऊ की इतनी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की थी कि तीन अंग्रेजी टुकड़ियाँ मिलकर भी लखनऊ मे घुस सकी 16 जुलाई को बेगम ने पुरी तैयारियों के साथ बेलीगारद पर हमला कर विद्रहोहियों का नामोनिषान मिटा देना चाहती थी लेकिन बेगम से ईष्र्या करने वाले मोर्चाें का हाल दुष्मनों तक पहुँचना शुरू हो गया था अमहदुल्ला षाह की विद्रोही सेना ने 21 सितम्बर को आलमबाग के मोर्चाें पर अंगे्रजों को कड़ी षिकस्त दी कलकत्ता में फोर्ट विलियम को उड़ाने की योजना बन चुकी थी लेकिन विष्वासघातियों के कारण यह ने हो सका और इस युद्ध में अहमदषाह घायल हो गये और वजीरे आजम मार डाले गये जिससे सेना बिखर गयी इसके बाद बेगम ने सेना को हौसला बुलन्द रखने के लिए स्वयं सेना की कमान संभाली उनकी महिला सेना ने भी अपने मोर्चे संभाल लिये बेगम ने बहुत ही समझदारी तथा बहादुरी से युद्ध किया किन्तु विष्वासघातियों के कारण अन्त में उन्हें लखनऊ छोड़ना पड़ा यूँ तो अंग्रेजों ने 25 सितम्बर 1857 को अहमदबाग रजीमेन्ट को आजाद कर लिया, किन्तु वे लखनऊ पर अधिकार नहीं कर पाये थे उसके बाद बेगम ने जौनपुर, आजमगढ़ और इलाहबाद आदि पर अधिकार करने के आदेष क्रान्तिकारी सैनिकों को दिये थे और बेगम ने कहा कि कोई भी अंग्रेजों के धोखे में आए।7 लेकिन इस बीच दिल्ली और कानपुर की हार के कारण सैनिकों के हौसलें पस्त हो गये और अंग्रेजों के हौसले बुलन्द थे बेगम हजरत ने लखनऊ की कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की थी लेकिन अंग्रेज 57840 सैनिकों, 12677 घुड़सवारों और 122 तोपों से सुसज्जित विषाल सैना, कैंपबेल, हैवलाॅक और आऊट्ररम जैसे दक्ष सेनापतियों के नेतृत्व में लखनऊ पर दोबारा कब्जे के लिऐ चढ़ आई बेगम हजरत महल के पास 36 हजार सैनिक और 6 हजार घुड़सवार थे मार्च 1858 में आलमबाग में दौनों सैनाओं में भयंकर टक्कर हुई जिसे आलमबाग की लड़ाई कहा जाता है।8 16 मार्च 1958 को अंग्रेज सेना ने बेगम के महल और केसरबाग लखनऊ पर अपना अधिकार कर 21 मार्च को पूरे लखनऊ को अपने अधिकार क्षेत्र में लेकर में ले लिया।9 बेगम अपने सेनापति अहमदुल्ला षाह के साथ अंग्रेजों के घेरे से सुरक्षित बाहर निकल गई उन्होनें नदी-घाटों और जंगल वाले रास्तों से अंग्रेजों की चैकियों को तोड़ने के लिए लड़ाई जारी रखी लेकिन बेगम को सफलता मिल सकी एक और अंगे्रजी सेना बेगम तथा नाना साहब को खदेड़ रही थीं दूसरी और अंग्रेजों का पिठ्ठू राजा जंगबहादुर उनको नेपाल में घुसने नहीं दे रहा था इस समय बेगम के पास काफी धन था बेगम के साथ 6 हजार सैनिक तथा शहजाद ब्रर्जिस कदर भी साथ थे इसी दौरान अहमदुल्लाह षाह ने शाहजहाँपुर पर कब्जा कर लिया था फिर अंग्रेजों ने अहमदुल्लह षाह को घेर  लिया, लेकिन बेगम और नाना शाह ने उन्हें छुड़ा लिया, परन्तु एक गद्दार ने अहमदुल्लाह शाह को पकड़ लिया और उनका खून कर उनका सिर काटकर अंग्रेजों के पास अपनी वफादारी का सबूत देने के लिए भेज दिया

 

लखनऊ से निकल कर बेगम का नेपाल की सीमा तक कई जगह स्वागत किया गया और कई जगह अंग्रेजों के डर से लोगों ने उनसे बेरूखी भी दिखाई लेकिन बेगम ने हार मानी और बहुत मुष्किलों और कोषिषों के बाद बेगम अपने पुत्र ब्रर्जिस कादर समेत अवध के तमाम क्रांतिकारियों के साथ नेपाल जा पहुंचे।10 बेगम हजरत ने वीरता का परिचय देकर अपनी जमीन पर गुलामों की तरह लखनऊ में रहना पसन्द नहीं किया अप्रैल 1879 में काठमांडू में उनकी मृत्यु हुई बेगम को काठमांडू (नेपाल) में जामा-मस्जिद में दफना दिया गया बेगम ने सारा धन, जो नेपाल में भारतीय रहते थे उनको वहाँ स्थापित करने में लगा दिया

 

इस क्रान्तिकारी वीरांगना ने पर्दे से बाहर निकल कर अपनी सेना का नेतृत्व किया था तथा हिन्दु-मुस्लिम दोनों वर्ग के लोगों को एकजुट करके अंग्रेजी सरकार के खिलाफ लड़ने का आह्नान किया तथा स्वयं भी जीवन-पर्यन्त अंग्रेजों के विरूद्ध रही तथा बेगम हजरत महल द्वारा गठित स्त्रियों की सैनिक टोली रहीमिया ने भी अंग्रेजों का मुकाबला किया लखनऊ पर अंग्रेजों के अधिकार के बाद भी मुक्ति संग्राम चलता रहा।11  

 

संदर्भ ग्रंथ

1.   विपिन चंद्र: आधुनिक भारत का इतिहास, ओरिऐन्ट ब्लैकस्वाॅन प्राइवेट लिमिटेड, हैदराबाद, 2012, पृ0 129

2.   श्री केषव कुमार ठाकुरः भारत में अंग्रेंजी राज्य के दो सौ वर्ष, आदर्ष हिन्दी पुस्तकालय, इलाहाबाद, 1968, पृ0 327

3.   वही, पृ0 315

4.   कर्मेन्दु षिषिर: 1857 की राजक्रांति: विचार और विष्लेषण, अनामिका पब्लिषर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स (प्रा0) लि0, नई दिल्ली, 2008, पृ0 81

5.   धर्मेेन्द्र नाथः 1857 का मुक्ति संग्रामः भ्रम, भ्रांन्तियाॅ और सत्य, राधा पब्लिकेषन्स, नई दिल्ली, 2011, पृ0 325

6.   शेखर बंधोपाध्याय, प्लासी से विभाजन तक आधुनिक भारत का इतिहास, ओरिऐन्ट ब्लैकस्वाॅन प्राइवेट लिमिटेड, हैदराबाद, 2013, पृ0 172

7.   विकास नारायण राय और रंजीव सिंह दलालः 1857 भारत का स्वतंत्रता संग्राम, हरियाणा पुलिस एकादमी, मधुबन, करनाल, 2010, पृ0 178

8.   कर्मेन्दु षिषिर, पृ0 126

9.   सुरेन्द्र नाथ सेनः अठारह सौ सत्तावन, प्रकाषन विभाग, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, सूचना भवन, नई दिल्ली, 2005, पृ0 280

10.  विकास नारायण राय और रंजीव सिंह दलाल, पृ0 178

11.  धर्मेेन्द्र नाथः पृ0 325  

 

Received on 24.03.2013

Modified on 27.04.2013

Accepted on 21.05.2013              

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Research J. Humanities and Social Sciences. 4(2): April-June, 2013, 280-282.